Wednesday 27 May 2015

एक बार गाँव का सरदार गाड़ी में 🚘 अपने मित्रों के साथ पिकनिक पर जा रहा था।

एक बार गाँव का सरदार गाड़ी में 🚘 अपने मित्रों के साथ पिकनिक पर जा रहा था।



गाड़ी के सामने के काँच से मित्रों को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। 😟 लेकि सरदार सड़क के तमाम गड्ढे बचाता हुआ बड़ी सफाई से गाडी चला रहा था।

मित्रों ने हैरान होकर पूछा---" सरदार, सामने काँच से कुछ भी साफ़ नजर नहीं आ रहा। फिर भी गाड़ी इतनी परफेक्ट कैसे चला रहे हो ? "😧😧😧
सरदार ---" क्या बताऊँ यारों ? अपनी भूलने की आदत के कारण अब तक मेरे 1760 चश्मे गुम चुके हैं। "☺

मित्र---" अरे सरदार हम ड्राइविंग के बारे में पूछ रहे हैं। "😣😠

सरदार ---" वही तो बता रहा हूँ।😜 चश्मे बनवा बनवा कर मैं हैरान परेशान हो गया तब......
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गाड़ी का काँच ही चश्मे के नंबर वाला बनवाकर गाड़ी में लगवा लिया। "

Wednesday 13 May 2015

Call of God

☎📱CALL OF GOD📱☎

मैं उपरवाला बोल रहा हूँ, जिसने ये पूरी दुनिया बनाई वो उपरवाला.

तंग आ चूका हूँ  मैं तुम लोगों से,

 घर का ध्यान तुम न रखो और चोरी हो जाये तो, "उपरवाले तूने क्या किया".

गाड़ी तुम तेज़ चलाओ और धक्का लग जाये तो, "उपरवाले........".

 पढाई तुम न करो और फेल हो जाओ तो, "उपरवाले.........".

 ऐसा लगता है इस दुनिया में होने वाले हर गलत काम का जिम्मेदार मैं हूँ.

आजकल तुम लोगो ने एक नया फैशन बना लिया है, जो काम तुम लोग नहीं कर सकते, उसे करने में मुझे भी असमर्थ बता देते हो!

उपरवाला भी भ्रष्टाचार नहीं मिटा सकता,
उपरवाला भी महंगाई नहीं रोक सकता,
उपरवाला भी बलात्कार नहीं रोक सकता.......
ये सब क्या है?
भ्रष्टाचार किसने बनाया?
 मैंने?
किससे रिश्वत लेते देखा है तुमने मुझे?

मैं तो हवा, पानी, धुप, आदि सबके लिए बराबर देता हूँ,

 कभी देखा है कि ठण्ड के दिनों में अम्बानी के घर के ऊपर मैं तेज़ धुप दे रहा हूँ, या गर्मी में सिर्फ उसके घर बारिश हो रही है ?

उल्टा तुम मेरे पास आते हो रिश्वत की पेशकश लेकर,
कभी लड्डू,
कभी पड़े,
कभी चादर.
और हा,
आइन्दा से मुझे लड्डू की पेशकश की तो तुम्हारी खैर नहीं,
मेरे नाम पे पूरा डब्बा खरीदते हो,
एक टुकड़ा मुझपर फेंक कर बाकि खुद ही खा जाते हो.

ये महंगाई किसने बनाई?
मैंने?
मैंने सिर्फ ज़मीन बनाई,
उसे "प्लाट" बनाकर बेचा किसने?

मैंने पानी बनाया,
उसे बोतलों में भरकर बेचा किसने?

मैंने जानवर बनाये,
उन्हें मवेशी कहकर बेचा किसने?

मैंने पेड़ बनाये,
उन्हें लकड़ी कहकर बेचा किसने?

मैंने आज तक तुम्हे कोई वस्तु बेचीं?
किसी वस्तु का पैसा लिया?
सब चीज़ों में कसूर मेरा निकालते हो।
अभी भी समय है
सुधर जाओ
वरना
फिर मत कहना
ये प्रलय क्यूँ आई
🍃🍀..Pls think over it. Dont play with nature...

Sunday 10 May 2015

Maa ke liye words - happy mother's day

"............."माँ"............."

माँ- दुःख में सुख का एहसास है,
माँ - हरपल मेरे आस पास है ।
माँ- घर की आत्मा है,
माँ- साक्षात् परमात्मा है ।
माँ- आरती, अज़ान है,
माँ- गीता और कुरआन है ।
माँ- ठण्ड में गुनगुनी धूप है,
माँ- उस रब का ही एक रूप है ।
माँ- तपती धूप में साया है,
माँ- आदि शक्ति महामाया है ।
माँ- जीवन में प्रकाश है,
माँ- निराशा में आस है ।
माँ- महीनों में सावन है,
माँ- गंगा सी पावन है ।
माँ- वृक्षों में पीपल है,
माँ- फलों में श्रीफल है ।
माँ- देवियों में गायत्री है,
माँ- मनुज देह में सावित्री है ।
माँ- ईश् वंदना का गायन है,
माँ- चलती फिरती रामायन है ।
माँ- रत्नों की माला है,
माँ- अँधेरे में उजाला है,
माँ- बंदन और रोली है,
माँ- रक्षासूत्र की मौली है ।
माँ- ममता का प्याला है,
माँ- शीत में दुशाला है ।
माँ- गुड सी मीठी बोली है,
माँ- ईद, दिवाली, होली है ।
माँ- इस जहाँ में हमें लाई है,
माँ- की याद हमें अति की आई है ।
माँ- मैरी, फातिमा और दुर्गा माई है,
माँ- ब्रह्माण्ड के कण कण में समाई है ।
माँ- ब्रह्माण्ड के कण कण में समाई है ।

"अंत में मैं बस ये इक पुण्य का काम
दुनिया की सभी माँओं को दंडवत प्रणामँ

Saturday 9 May 2015

लेकिन दुनियां की सारी माँ के लिए इतनी लाइनें भी कम हैं

ये लाइनें मेरी नही हैं और दो से बहुत ज्यादा भी हैं
लेकिन दुनियां की सारी माँ के लिए इतनी लाइनें भी कम हैं
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
एक बार इस कविता को दिल से पढ़िये
शब्द शब्द में गहराई है...

जब आंख खुली तो अम्‍मा की
गोदी का एक सहारा था
उसका नन्‍हा सा आंचल मुझको
भूमण्‍डल से प्‍यारा था

उसके चेहरे की झलक देख
चेहरा फूलों सा खिलता था
उसके स्‍तन की एक बूंद से
मुझको जीवन मिलता था

हाथों से बालों को नोंचा
पैरों से खूब प्रहार किया
फिर भी उस मां ने पुचकारा
हमको जी भर के प्‍यार किया

मैं उसका राजा बेटा था
वो आंख का तारा कहती थी
मैं बनूं बुढापे में उसका
बस एक सहारा कहती थी

उंगली को पकड. चलाया था
पढने विद्यालय भेजा था
मेरी नादानी को भी निज
अन्‍तर में सदा सहेजा था

मेरे सारे प्रश्‍नों का वो
फौरन जवाब बन जाती थी
मेरी राहों के कांटे चुन
वो खुद गुलाब बन जाती थी

मैं बडा हुआ तो कॉलेज से
इक रोग प्‍यार का ले आया
जिस दिल में मां की मूरत थी
वो रामकली को दे आया

शादी की पति से बाप बना
अपने रिश्‍तों में झूल गया
अब करवाचौथ मनाता हूं
मां की ममता को भूल गया

हम भूल गये उसकी ममता
मेरे जीवन की थाती थी
हम भूल गये अपना जीवन
वो अमृत वाली छाती थी

हम भूल गये वो खुद भूखी
रह करके हमें खिलाती थी
हमको सूखा बिस्‍तर देकर
खुद गीले में सो जाती थी

हम भूल गये उसने ही
होठों को भाषा सिखलायी थी
मेरी नीदों के लिए रात भर
उसने लोरी गायी थी

हम भूल गये हर गलती पर
उसने डांटा समझाया था
बच जाउं बुरी नजर से
काला टीका सदा लगाया था

हम बडे हुए तो ममता वाले
सारे बन्‍धन तोड. आए
बंगले में कुत्‍ते पाल लिए
मां को वृद्धाश्रम छोड आए

उसके सपनों का महल गिरा कर
कंकर-कंकर बीन लिए
खुदग़र्जी में उसके सुहाग के
आभूषण तक छीन लिए

हम मां को घर के बंटवारे की
अभिलाषा तक ले आए
उसको पावन मंदिर से
गाली की भाषा तक ले आए

मां की ममता को देख मौत भी
आगे से हट जाती है
गर मां अपमानित होती
धरती की छाती फट जाती है

घर को पूरा जीवन देकर
बेचारी मां क्‍या पाती है
रूखा सूखा खा लेती है
पानी पीकर सो जाती है

जो मां जैसी देवी घर के
मंदिर में नहीं रख सकते हैं
वो लाखों पुण्‍य भले कर लें
इंसान नहीं बन सकते हैं

मां जिसको भी जल दे दे
वो पौधा संदल बन जाता है
मां के चरणों को छूकर पानी
गंगाजल बन जाता है

मां के आंचल ने युगों-युगों से
भगवानों को पाला है
मां के चरणों में जन्‍नत है
गिरिजाघर और शिवाला है

हिमगिरि जैसी उंचाई है
सागर जैसी गहराई है
दुनियां में जितनी खुशबू है
मां के आंचल से आई है

मां कबिरा की साखी जैसी
मां तुलसी की चौपाई है
मीराबाई की पदावली
खुसरो की अमर रूबाई है

मां आंगन की तुलसी जैसी
पावन बरगद की छाया है
मां वेद ऋचाओं की गरिमा
मां महाकाव्‍य की काया है

मां मानसरोवर ममता का
मां गोमुख की उंचाई है
मां परिवारों का संगम है
मां रिश्‍तों की गहराई है

मां हरी दूब है धरती की
मां केसर वाली क्‍यारी है
मां की उपमा केवल मां है
मां हर घर की फुलवारी है

सातों सुर नर्तन करते जब
कोई मां लोरी गाती है
मां जिस रोटी को छू लेती है
वो प्रसाद बन जाती है

मां हंसती है तो धरती का
ज़र्रा-ज़र्रा मुस्‍काता है
देखो तो दूर क्षितिज अंबर
धरती को शीश झुकाता है

माना मेरे घर की दीवारों में
चन्‍दा सी मूरत है
पर मेरे मन के मंदिर में
बस केवल मां की मूरत है

मां सरस्‍वती लक्ष्‍मी दुर्गा
अनुसूया मरियम सीता है
मां पावनता में रामचरित
मानस है भगवत गीता है

अम्‍मा तेरी हर बात मुझे
वरदान से बढकर लगती है
हे मां तेरी सूरत मुझको
भगवान से बढकर लगती है

सारे तीरथ के पुण्‍य जहां
मैं उन चरणों में लेटा हूं
जिनके कोई सन्‍तान नहीं
मैं उन मांओं का बेटा हूं

हर घर में मां की पूजा हो
ऐसा संकल्‍प उठाता हूं
मैं दुनियां की हर मां के
चरणों में ये शीश झुकाता हूं...

मदर्स डे ( 10 मई ) है  माँ के प्यार  की खातिर इसे जरूर आगे भेजे शायद किसी बेटे का दिल परिवर्तन हो जाये और वो अपनी माँ  की ममता को समझ सके
दोस्तों दुनिया में पैसे से सब कुछ खरीदा जा सकता है पर माँ का प्यार नहीं
💐💐 माँ तुझे सलाम 💐💐
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏