Wednesday, 20 November 2013

अंतिम दिन का मैदान

 

पहले दिन तो अछूती थी खेल पट्टी अनाहत दूबों के अँखुओं से भरी अंतर में कहीं दबी हुई नमी आज अंतिम दिन इस चुनौतीपूर्ण कसौटी का निर्णायक मोड़ पीछे की सारी हलचलों की खराशें हैं इस पर और लाल मटमैले धब्बे जगह जगह सिलवटें और टूटन हर टप्पे के साथ उड़ती है धूल गेंद कभी बैठ जाती है कभी सहसा उठ कर मानो चूमना चाहती अच्छे दिन तो सब देख लेते खिलाड़ी वही खेले बेहतर जो खराब मैदान पर सबसे सधी कोशिश करे सबसे खरा प्रदर्शन हवा के रुख को मोड़े और तब भी पाँव अडिग टिके रहें जमीन पर यही तो निकष यही तो परख कौशल की संयम की युक्ति की मनोबल की जो इसे बरतेगा निभायेगा वही रहेगा इस दबाव को झेल सकेगा थाह पायेगा राह पायेगा धाह में खिलेगा अंत तक रहेगा विजेता अंतिम दिन की इस खेल पट्टी पर जहाँ हर क्षण पहले प्यार की तरह अप्रत्याशित...

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