Sunday, 27 July 2014

तुम्हें हर बार

तुम्हें हर बार 
सिर्फ जीत चाहिए 
हार ..
कभी नहीं स्वीकार ! 
जीत वो है 
जिसे सब चाहते हैं 
हार बेकार सी है 
गाली है दुत्कार सी है 
जीत की छोड़ी हुई 
बची हुई 
निकृष्ट - घिनोनी
गंदगी सी - बेचारी हार !
रोती है तड़पती है हर बार !!
ओ जीत के सिंहासन पर
विराजमान
जरा देर में जीत
हाथ से छूटेगी
और हार गले आ पड़ेगी
हा हा हा हा
तेरी ही तरह
तुझपर भी हंसेगा
जीतने वाला कोई !!
हा हा हा हा !!! 

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