Monday, 7 July 2014

90 का दूरदर्शन और हम -

90 का दूरदर्शन और हम - 1.सन्डे को सुबह-2 नहा-धो कर टीवी के सामने बैठ जाना 2."रंगोली"में शुरू में पुराने फिर नए गानों का इंतज़ार करना 3."जंगल-बुक"देखने के लिए जिन दोस्तों के पास टीवी नहीं था उनका घर पर आना 4."चंद्रकांता"की कास्टिंग से ले कर अंत तक देखना 5.हर बार सस्पेंस बना कर छोड़ना चंद्रकांता में और हमारा अगले हफ्ते तक सोचना 6.शनिवार और रविवार की शाम को फिल्मों का इंतजार करना 7.किसी नेता के मरने पर कोई सीरियल ना आए तो उस नेता को और गालियाँ देना 8.सचिन के आउट होते ही टीवी बंद कर के खुद बैट-बॉल ले कर खेलने निकल जाना 9."मूक-बधिर"समाचार में टीवी एंकर के इशारों की नक़ल करना 10.कभी हवा से ऐन्टेना घूम जाये तो छत पर जा कर ठीक करना बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता, दोस्त पर अब वो प्यार नहीं आता। जब वो कहता था तो निकल पड़ते थे बिना घडी देखे, अब घडी में वो समय वो वार नहीं आता। बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता...।।। वो साईकिल अब भी मुझे बहुत याद आती है, जिसपे मैं उसके पीछे बैठ कर खुश हो जाया करता था। अब कार में भी वो आराम नहीं आता...।।। जीवन की राहों में कुछ ऐसी उलझी है गुथियाँ, उसके घर के सामने से गुजर कर भी मिलना नहीं हो पाता...।।। वो 'मोगली' वो 'अंकल Scrooz', 'ये जो है जिंदगी' 'सुरभि' 'रंगोली' और 'चित्रहार' अब नहीं आता...।।। रामायण, महाभारत, चाणक्य का वो चाव अब नहीं आता, बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता...।।। वो एक रुपये किराए की साईकिल लेके, दोस्तों के साथ गलियों में रेस लगाना! अब हर वार 'सोमवार' है काम, ऑफिस, बॉस, बीवी, बच्चे; बस ये जिंदगी है। दोस्त से दिल की बात का इज़हार नहीं हो पाता। बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता...।।। बचपन वाला वो 'रविवार' अब नही आता...।।।

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