आदमी जब पत्तल में खाना खाता था,
मेहमान को देख के वह हरा हो जाता था,
स्वागत में पूरा परिवार बिछ जाता था....
बाद में जब वह मिट्टी के बर्तन में खाने लगा,
रिश्तों को जमीन से जुड़कर निभाने लगा..
फिर जब पीतल के बर्तन उपयोग में लेता था,
रिश्तों को साल छः महीने में चमका लेता था...
लेकिन बर्तन कांच के जब से बरतने लगे,
एक हल्की सी चोट में रिश्ते बिखरने लगे ...
अब बर्तन, थर्मोकोल पेपर के इस्तेमाल होने लगे,
सारे सम्बन्ध भी अब यूज़ एंड थ्रो होने लगे ...
-जय महावीर-
मेहमान को देख के वह हरा हो जाता था,
स्वागत में पूरा परिवार बिछ जाता था....
बाद में जब वह मिट्टी के बर्तन में खाने लगा,
रिश्तों को जमीन से जुड़कर निभाने लगा..
फिर जब पीतल के बर्तन उपयोग में लेता था,
रिश्तों को साल छः महीने में चमका लेता था...
लेकिन बर्तन कांच के जब से बरतने लगे,
एक हल्की सी चोट में रिश्ते बिखरने लगे ...
अब बर्तन, थर्मोकोल पेपर के इस्तेमाल होने लगे,
सारे सम्बन्ध भी अब यूज़ एंड थ्रो होने लगे ...
-जय महावीर-
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