"बिस्तर पर सोने को केवल चार लोगों की जगह है।"
"कोई बात नहीं मुझे तो वैसे भी नया गद्दा चुभता है। मैं ज़मीन पर सो लूँगी। आप और बच्चे बिस्तर पर सोया कीजिये।"
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"इस बार दीवाली पर बोनस नहीं मिलेगा। पूजा तो हो जाएगी मगर नए कपड़े और खिलौने नहीं ला पाऊँगा बच्चों के लिए।"
"आप चिंता मत करिए। मैंने कुछ पैसे बचा कर रखे थे आपके पिछले महीनों के बोनस से। आप थान के कपड़े ले आइयेगा। बच्चों के नए कपड़े सिल दूँगी मैं। और खिलौने भी आ जाएंगे।"
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"सुनो, मेरी सैलरी में इजाफ़ा हुआ है। इस बार अपने लिए एक दो सलवार-सूट सिलवा लेना।"
"मेरे पास पहनने के कपड़ों की कमी नहीं है। आपने अपने जूतों की हालत देखी है? इस बार तो आपके लिए रेड चीफ के शूज़ खरीदने हैं। और बड़ी बेटी को फैंसी ड्रेस कम्पटीशन में भाग लेना था। उसके लिए भी एक प्यारी सी ड्रेस।"
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"माँ, खाने में तो मटर-पनीर बना था ना। तुम ये कल रात की बासी सब्जी क्यों खा रही हो?"
"अरे, मुझे मटर पनीर नहीं पसन्द, बेटा। तेरे पापा और छुटकी को पसन्द है। उनको सुबह टिफ़िन में देने के लिए बचा दी है।"
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"सुनो, माफ़ करना, मैं इस बार फिर से हमारी शादी की सालगिरह भूल गया।"
"कोई नहीं, मैं भी भूल गयी थी। मुझे भी अपनी बेटियों ने ही याद दिलाया।"
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"बेटी , तू दिल्ली रहकर तैयारी कर ले एग्ज़ाम की।"
"नहीं, माँ। छुटकी का नए कॉलेज में एडमिशन भी तो कराना है। मैं कोई जॉब ढूँढकर सेटल हो जाती हूँ। एक साल का ड्रॉप लेकर फिर पोस्ट-ग्रेजुएशन कर लूँगी। कोई दिक्कत नहीं है।"
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मिडिल क्लास फैमिलीज़ में केवल अड़जस्टमेंट्स होते है ...वहां प्यार की जगह नहीं होती मगर शायद प्यार ऐसी जगहों में पलना ही पसन्द करता है... तभी तो एडजस्ट करते-करते ना जाने कब बड़ा हो जाता है प्यार... और फिर ठहर जाता है प्यार.... पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ता जाता है प्यार... असल मायने में दूसरों की ख़ुशियों को अपनी खुशी से ऊपर रखना ही तो होता है, प्यार....
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