Wednesday, 7 October 2015

* मैसेज की व्यथा *

*  मैसेज की व्यथा *
एक दिन एक थकाहारा ,
दुबला- पतला , मैसेज ,
मेरे पास आया !
आते ही उसने फरमाया !
बोला- पंडितजी :-
मैं फारवर्ड हो-होकर थक गया हूं !
लाखों मोबाईलो में जा-जा कर,
पक गया हूं !
जिसके भी पास जाता हूं ,
वो मुझे आगे भेज देते है !
कोई-कोई वेज तो कोई ,
नॉनवेज देते है !
दौड-दौड कर मैं अनफिट ,
हो गया हूं !
कहीं-कहीं पर तो मैं डिलीट ,
हो गया हूं !
सारे देश के मोबाईलो के भार ,
मेरे पर ही आते है !
कुछ लोग ही है आप जैसे जो ,
रोज नये मैसेज बनाते है !
मैने कहा - मैसेज भाई ,
तेरी पीडा बडी दुखदाई है !
पर मेरी सोच तेरे से भी ,
हाई है !
परिश्रम के बिना तो प्रसिद्धि ,
भी नही मिलती !
बिना श्रम के तो इस देश में ,
रद्दी भी नही मिलती ,
इसलिए चिंता छौड !
और रात-दिन दौड

No comments:

Post a Comment