Monday 8 May 2017

ENJOY REAL STORY OF 84 BIRTHS



ये कहानी है चौरासी जन्मों की - ८४ लाख जन्मों की नहीं


दुनिया मानती है की मनुष्य आत्माओं को ८४ लाख जन्मों ( योनियों )में भटकना पड़ता है।

शायद ८४ लाख योनियां हैं ही नहीं।  ऐसा कोई भी नहीं जो  मात्र एक लाख योनियों का ही लेखा जोखा भी प्रस्तुत कर पाए।

और इन बातों से कौन डरता है ? क्या इनके डर से समाज  में सुधार आया है ?

क्या पाप कर्मों और दुष्कर्मों में कोई कमी आयी है ?

बिलकुल नहीं आयी है।  हमारा समाज आज रौरव नरक के रूप में जाना जाता है।

सच्चाई तो यह है की मनुष्य की आत्मा हर बार मनुष्य का ही जन्म लेती है और कभी भी जानवर -कीट -पतंगा आदि नहीं बनती।

पुनर्जन्म की सारी बातें इस बात की सत्यता साबित करती हैं की जो गत जीवन में रमेश या महेश था वही इस जीवन में गोपी या मधुसूदन बना है।  यानी की जो पहले मनुष्य था - वह अभी भी मनुष्य ही है।

उसमे से कोई भी अभी जानवर नहीं बना है।

इस प्रकार ८४ लाख योनियों में भटकने की बात गलत साबित हो गयी है।

आज से नहीं - हज़ारों वर्षों से लोग ऐसा मान रहे हैं की आत्माएं ८४ लाख योनियों में भटकती हैं।

जरा विचार करिये - क्या कभी आम के बीज से नीम का पौधा जन्मा है ?

कभी नहीं।

आत्मा भी बीज है जो मनुष्य का शरीर ही धारण करती है।

इस सत्य को समझ लेना चाहिए और कुत्ता या गधा बनूंगा - इस भय से मुक्त हो जाना चाहिए।

दरअसल - मानव जब हर जन्म में मानव बनेगा तभी वो अपना उत्थान करने के बारे में बिचार करेगा।

गधा बन कर वह अपनी भलाई के बारे में कैसे सोचेगा ?

मान लेते हैं कि वह अपने कुकर्मों के कारण गधा बना - मगर अब प्रायश्चित का मौका तो गया ?

 बदले में अगर वह मानव ही बने और उसे कुली का काम करने की मजबूरी हो तो क्या यह  गधे जैसा जन्म नही हुआ ?

इसमें बढ़िया बात यह है की अब वह कुली रहते रहते विचार कर सकेगा की उसे कुली का कार्य क्यों करना पड़  रहा है !!

शायद वह कुछ ऐसा कर ले की आने वाले जन्मों में वह आई ए एस  IAS बन जाए ??

या उससे भी कुछ बेहतर ??

लकीर का फ़क़ीर बने रहने से अच्छा है की हम सत्य को समझे और उसपर चलें।  

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