Saturday, 27 June 2015

जिंदगी बनाने के लिए,

 जिंदगी बनाने के लिए,
घर से दूर निकल आया हूँ,
सपनो को पाने की चाहत में,
अपनों को दूर छोड़ आया हूँ,
सुख साधन कितने ही समेट लूं,
मेरा घर आज भी याद आता है,
चाहूं तो सारी दुनिया को नाप लूं,
आखिर में माँ के हाथ का खाना याद आता है,
बीमार जब होता हूँ तो इलाज तो मिल
जाता है,
पर जब दवा न काम आती तो माँ का दुलार
याद आता है,
अब तो बस कोसता हूँ अपने आप को,
की क्या करने चला आया हूँ,
जिंदगी बनाना चाहता था मैं ..
और जिंदगी से ही दूर चला आया हूँ..

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