Sunday, 26 January 2014

दिम्माग की खदान में कुछ बातें है

दिम्माग की खदान में कुछ बातें है - जो छुपानी हैं, खुद से भी. कुछ यादें हैं जो बेगानी है एक लिखावट है - अनजानी है. टूटी खपरैल है जिसका रंग उतरा है मटमैली चप्पल है, जिसे धोना अभी बाकी है एक झींगुर है जिसे बंद होना है खाली माचिस की डिबिया में. एक तितली है जो मेरे हाथों मरी है एक औरत है जो हर अँधेरे में खड़ी है. एक पोखर है - जो सूखा है एक बरगद है, रूखा है. मंदिर है - जिसकी दीवारों को सफेदी चाहिए. घंटी है जो अब बजती नहीं. एक फटा ढोल है - जिसपे चमड़े की तह लगानी है भैरव गाना है, भूपाली गानी है. ३ इंच की स्क्रीन वाला एक कैमरा है ४ कोनों वाला एक कमरा है. ५ फीट की कद वाली एक लड़की है. ६ महीनों से खिचती एक नौकरी है. और इन सबसे ७-८ मील दूर खड़ा हूँ मैं. जिसका दिमाग एक खदान है जिसमे कुछ बाते हैं जो छुपानी हैं, खुद से भी.

No comments:

Post a Comment