साथी घर जाकर मत कहना, संकेतों में बतला देनायदि हाल मेरी माता पूछे, मुरझाया फूल दिखा देनायदि इतना कहने से न माने, जलता दीपबुझा देनायदि हाल मेरी बहना पूछे, मस्तक तिलक मिटा देनायदि इतना कहने से न माने, तो राखी तोड दिखा देनायदि हाल मेरी पत्नी पूछे, मांग सिंदूर मिटा देनायदि इतना कहने से न माने, तो चूडी तोड दिखा देनामित्रो ना जाने किस कवि ने ये अमरपंक्तिया लिखी है...आँखे नम हो जाती है अक्सर ये सोच कर की इनजवानो का दिल कितना दुखता होगा देशकी दुर्दशा देखकर, सोचते होंगे बाहर के दुश्मन सेतो निपट ले पर घर के जयचंद का क्या ..!!
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