Sunday, 26 January 2014

दिम्माग की खदान में कुछ बातें है

दिम्माग की खदान में कुछ बातें है - जो छुपानी हैं, खुद से भी. कुछ यादें हैं जो बेगानी है एक लिखावट है - अनजानी है. टूटी खपरैल है जिसका रंग उतरा है मटमैली चप्पल है, जिसे धोना अभी बाकी है एक झींगुर है जिसे बंद होना है खाली माचिस की डिबिया में. एक तितली है जो मेरे हाथों मरी है एक औरत है जो हर अँधेरे में खड़ी है. एक पोखर है - जो सूखा है एक बरगद है, रूखा है. मंदिर है - जिसकी दीवारों को सफेदी चाहिए. घंटी है जो अब बजती नहीं. एक फटा ढोल है - जिसपे चमड़े की तह लगानी है भैरव गाना है, भूपाली गानी है. ३ इंच की स्क्रीन वाला एक कैमरा है ४ कोनों वाला एक कमरा है. ५ फीट की कद वाली एक लड़की है. ६ महीनों से खिचती एक नौकरी है. और इन सबसे ७-८ मील दूर खड़ा हूँ मैं. जिसका दिमाग एक खदान है जिसमे कुछ बाते हैं जो छुपानी हैं, खुद से भी.

Thursday, 23 January 2014

ट्रेफिक हवलदार - लायसेंस बताओ!

ट्रेफिक हवलदार - लायसेंस बताओ!

चालक - नहीं है साब!
ट्रेफिक हवलदार - क्या तुमने ड्रायविंग लायसेंस बनवाया है?
चालक - नहीं।
ट्रेफिक हवलदार - क्यों?
चालक - मैं बनवाने गया था, पर वो पहचान पत्र माँगते हैं। वो मेरे पास नही है।
ट्रेफिक हवलदार - तो तुममतदाता पहचान पत्र बनवा लो।
चालक - मै वहाँ गया था साब! वो राशनकार्ड माँगते है। वो मेरे पास नहीं है।
ट्रेफिक हवलदार - तो पहले राशन कार्ड बनवा लो।
चालक - मैं म्युनिसिपल भी गया था साब! वो पासबुक माँगते हैं।
ट्रेफिक हवलदार - तो मेरे बाप बैंक खाता खुलवा ले।
चालक - मैं बैंक गया था साब! बैंकवाले ड्रायविंग लायसेंस माँगते हैं।

Wednesday, 22 January 2014

साथी घर जाकर मत कहना, संकेतों में बतला देना

साथी घर जाकर मत कहना, संकेतों में बतला देनायदि हाल मेरी माता पूछे, मुरझाया फूल दिखा देनायदि इतना कहने से न माने, जलता दीपबुझा देनायदि हाल मेरी बहना पूछे, मस्तक तिलक मिटा देनायदि इतना कहने से न माने, तो राखी तोड दिखा देनायदि हाल मेरी पत्नी पूछे, मांग सिंदूर मिटा देनायदि इतना कहने से न माने, तो चूडी तोड दिखा देनामित्रो ना जाने किस कवि ने ये अमरपंक्तिया लिखी है...आँखे नम हो जाती है अक्सर ये सोच कर की इनजवानो का दिल कितना दुखता होगा देशकी दुर्दशा देखकर, सोचते होंगे बाहर के दुश्मन सेतो निपट ले पर घर के जयचंद का क्या ..!!

Monday, 6 January 2014

डिग्री में हमें ठंड लगनें लगती है..

20 डिग्री में हमें ठंड लगनें लगती है.. 16 डिग्री में हम गर्म कपड़े पहनते हैं.. 12 डिग्री में हम मफलर आदी लगाते हैं.. 8 डिग्री में हम उसके बाद भी कंपनें लगते हैं. 4/5 डिग्री में रजाई से बाहर नहीं निकलते.. 1/2 डिग्री में घरों में अलाव जलनें लगते हैं.. 0 डिग्री पर पानीं जम जाता है.. -1/2 डिग्री पर हमारी जबान लड़खड़ानें लगती है.. -5/8 डिग्री पर ... -10/12 डिग्री पर... -15/18 डिग्री पर सोचिये... -20 डिग्री पर सियाचीन में भारतीय सैनिक भारत की सीमाओं की रक्षा करते हैं.... पूरी मुस्तैदी के साथ