रोज़ करते-करते
झाड़ू-पोछा, बर्तन
अब आया समझ
क्यों अक्सर गुस्से में रहता था
मम्मी का मन
जब कढ़ाई से उछल के लगा
हाथ में तेल का गर्म छींटा
तब मालूम हुआ
क्यों मम्मी-पापा में
मम्मी ने ही ज्यादा पीटा
अब जब घूमने के लिए
बस दो कमरे ही हैं
और देखने के लिए चार दीवारें
तो लगता है माँ ने तो
अपने अपनी ज़िंदगी के सारे दिन
Lockdown में ही गुज़ारे हैं
घर भर को चारों टाइम
परोसती थी खाने को
फिर भी बस उसे ही
नहीं मिलता था
बाहर जाने को
जिन कामों से हम बस कुछ ही दिनों में
परेशान हो गए
तूने उन कामों को रोज़ अपने सर लिया है
मां अब समझ आया
कितनी मेहनत से तूने
कुछ कमरों को घर किया है..
झाड़ू-पोछा, बर्तन
अब आया समझ
क्यों अक्सर गुस्से में रहता था
मम्मी का मन
जब कढ़ाई से उछल के लगा
हाथ में तेल का गर्म छींटा
तब मालूम हुआ
क्यों मम्मी-पापा में
मम्मी ने ही ज्यादा पीटा
अब जब घूमने के लिए
बस दो कमरे ही हैं
और देखने के लिए चार दीवारें
तो लगता है माँ ने तो
अपने अपनी ज़िंदगी के सारे दिन
Lockdown में ही गुज़ारे हैं
घर भर को चारों टाइम
परोसती थी खाने को
फिर भी बस उसे ही
नहीं मिलता था
बाहर जाने को
जिन कामों से हम बस कुछ ही दिनों में
परेशान हो गए
तूने उन कामों को रोज़ अपने सर लिया है
मां अब समझ आया
कितनी मेहनत से तूने
कुछ कमरों को घर किया है..
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